hindisamay head


अ+ अ-

कविता

पैसे फेंको

अभिज्ञात


पुल आया
नदी के नाम
गंगा, कावेरी, सरयू के
करो नमन
अइंछो अपने पाप-पुण्य पैसे फेंको
जो संबंध विसर्जित उनकी
स्मृतियों पर पैसे फेंको

पेट बजाता, खेल दिखाता, साँप नचाता एक सँपेरा
रस्सी पर डगमग पाँव सँभाले उस बच्चे की हँसी की खातिर
नेत्रहीन गायक, भिखमंगे, उस लँगड़े, लूले, बूढ़े
अंकवारों में लगे हुए दो बच्चे ले मनुहारें करती
युवती के फट गए वसन पर डाल निगाहें पैसे फेंको

दस पइसहवा, एक चवन्नी, छुट्टे बिन एक सगी अठन्नी
जेब टोहकर, पर्स खोलकर, अधरों पर मुस्कान तोलकर
त्याग भाव से, दया भाव से दिखा-दिखा कर पैसे फेंको
बिकती हुई अमीनाओं पर, रूप कुँवर की चिता वेदी पर
संबंधों की हत्याओं पर, धर्म के चमके नेताओं पर
मंदिर के विस्तृत कलशों पर, मस्ज़िद के ऊँचे गुंबद पर
गुरद्वारे के शान-बान पर, संप्रदाय के हर निशान पर
शीश नवाकर पैसे फेंको, आँख मूँदकर पैसे फेंको
छीन लिए जाएँगे तुमसे बेहतर है कि खुद ही फेंको

जितने भी हों तत्पर फेंको, डर है भीतर पैसे फेंको
जान बचाओ पैसे फेंको, लूट पड़ी है पैसे फेंको

अनब्याही बहनों के कारक उस दहेज पर
बिन इलाज माँ की बीमारी के प्रश्नों पर
बनिये के लंबे खाते पर, टुटहे चूते घर भाड़े पर
रोजगार की बढ़ती किल्लत
मुँह बाए त्यौहारों के शुभ अवसर से वंचित खुशियों के
नाम उदासी लिखकर उसकी गठरी पर कुछ पैसे फेंको
काम तुम्हारे क्या आएगा यह भी खूब समझकर फेंको

मुक्ति पर्व यह पैसे फेंको
सपनों पर अब कफन की खातिर पैसे फेंको
घर के होते घाट कर्म पर पैसे फेंको
मृत्युभोज अपना जीते जी सोच-सोच कर पैसे फेंको
इस समाज के ढाँचे पिचके हुए कटोरे
थूक समझकर देकर गाली पैसे फेंको
कंठ से जैसे फूट रही धिक्कार तुम ऐसे पैसे फेंको
सब कुछ है स्वीकार तुम्हें तो पैसे फेंको
फिर-फिर, फिर-फिर पैसे फेंको।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में अभिज्ञात की रचनाएँ